लघुकथा- बराबरी



गांव से लाकर सुबह-सुबह ताजी मूली, पालक, मेथी और सरसों का साग बेचने वाला सुक्खा पॉश  कॉलोनी के आलीशान बंगलों के मुख्यद्वारों पर हाँक लगाता, ‘‘मेथी ले लो....... ताजी पालक.......साग-सब्जियां.....’’

इन आलीशान बंगलों में साइकिल पर लदी उसकी हरी-हरी सब्जियाँ घंटे भर में बिक जातीं। एक उच्चाधिकारी की पत्नी रश्मि मैडम तो आये दिन उससे ही पालक-मेथी लेती और इस क्रम में वह सुक्खा से भलीभांति परिचित हो गयी थी। कभी-कभी वह सब्जियाँ खरीदते समय उसके घर और बाल-बच्चों का हाल-चाल भी पूछ लेती। इससे थके हुए सुक्खा को बड़ी राहत मिलती और हार्दिक प्रसन्नता भी।

‘‘बड़े लड़के की पढ़ाई कैसी चल रही है सुक्खा ? इस बार तो वह मैट्रिक की परीक्षा देगा न ?’’ एक दिन उन्होंने सुक्खा से पूछा।

‘‘हां, बीबी जी। बड़ी मेहनत कर रहा है। हमेशा  से अच्छे नंबरों से पास होता आया है। स्कूल में मास्टर जी भी उसकी बड़ा तारीफ करते है।’’

रेखांकन: रतन चंद 'रत्नेश'
‘‘अच्छी बात है। पढ़-लिखकर नौकरी में लग गया तो आगे चलकर तुम्हारा सहारा बनेगा’’

सौभाग्य से सुक्खा का बेटा जिले भर में प्रथम आया। लोगों की बधाइयों से वह फूला न समाया सुक्खा एक दिन मिठाई का डिब्बा लिये रश्मि  मैडम के द्वार पर जा उपस्थित हुआ।

‘‘बीबी जी, मेरा बेटा जिले भर में अव्वल आया है। अखबारों में उसकी फोटो भी छपी है। इसी खुशी  में आपके लिए मिठाई लाया हूँ।’’

रश्मि मैडम ने मिठाई का डिब्बा स्वीकार करते हुए प्रसन्नता जाहिर की और उसे बधाइयाँ दीं। फिर पूछा, ‘‘लड़के को आगे क्या कराने का विचार है सुक्खा ?’’

‘‘बीबी जी, मैं ने तो अब ठान लिया है कि जैसे भी हो, चाहे पुश्तैनी  जमीन ही क्यों न बेचनी पड़े,, मैं अपने बेटे को आप लोगों जैसा बड़ा अफसर बनाऊंगा।’’ सुक्खा ने उत्साहित होते हुए कहा।

ऐसा सुनना ही था कि रश्मि  बीबी जी के माथे पर विद्वेष  की त्योरियाँ चढ़ गयीं और सुक्खा के जाते ही उसने मिठाई का डिब्बा मुख्यद्वार के बाहर रखे कूड़े दान में फेंक दिया।





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