हम दोनों ने अपनी-अपनी पत्नियों और बच्चों को होटल में ही रहने दिया और समुद्र के किनारे आ गए। दूर-दूर तक फैला समुद्र का अनंत विस्तार। शहर की भागदौड़ भरी व्यस्त दुनिया से जुदा यह सुकून की दुनिया थी और पिछले एक सप्ताह से हम यहां के एक होटल में ठहरे थे।
आखिर कल उसी भीड़ में फिर से लौट जाना था।

मैंने विशाल के चेहरे की ओर देखा। वहां हवाइयां उड़ रही थीं। मैं भी मन ही मन बहुत डर गया। गले में पड़ी सोने की चैन कॉलर में छिपाने की कोशिश की। विशाल ने धीरे से कहा, 'जितना पी सकते हो, पी लो। बोतल फेंको और यहां से खिसको। ’
मैं सुरूर में था। अपनी दायीं पेंट की जेब पर इस तरह हाथ मारा जैसे वहां पिस्तौल हो। पिस्तौल था नहीं। मोबाइल पर हाथ पड़ा। उसे निकालकर लहराते हुए उन्हें डपटा, 'क्या है? भागो यहां से। ’ वे सकपकाए और हमसे कुछ दूर हट गए, पर उनकी निगाह अब भी हम पर थी। मैंने बीयर का अंतिम घूंट भरते हुए कहा, 'विशाल, बोतल फेंको और भागो। ’
हमने बीयर की खाली बोतलों को वहीं रेत पर फेंका और अपने होटल की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने लगे। वहां से हटे ही थे कि देखा वे चारों छीना-झपटी करते हुए खाली बोतलों पर टूट पड़े हैं। ( अमर उजाला में प्रकाशित )
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