लघुकथा: ईसा की वापसी

ईसा की वापसी




दोस्तोएवस्की/ अनुवादः रतन चंद ‘रत्नेश’

Story Update : Saturday, December 24, 2011    9:22 PM
अपनी मौत के अट्ठारह सौ साल बाद एक दिन स्वर्ग में बैठे ईसा को ख्याल आया कि चलकर देखना चाहिए कि धरती पर उनके प्रशंसक और श्रद्धालु अब उन्हें किस नजर से देखते हैं। अतः धरती पर वे अपनी मातृभूमि येरूशलम के गांव में प्रकट हुए।

सुबह की प्रार्थना के बाद श्रद्धालु चर्च से वापस लौट रहे थे। एक पेड़ के तले खड़े ईसा को देखकर वे बहुत हैरान हुए। वे उनके पास पहुंचे और पूछा, ‘आप कौन हैं श्रीमान? ईसा बनकर यहां क्यों खड़े हो?’

ईसा ने प्रत्युत्तर में कहा, ‘मैं ईसा ही हूं।’

सुनकर श्रद्धालु हंस पड़े, ‘भाग जा यहां से। हमारा पादरी आता ही होगा। तुम्हारी शामत आ जाएगी।’

‘पादरी तुम्हारा है या मेरा? मुझे पहचानो। मैं वही हूं जिसकी प्रार्थना कर तुम लोग चर्च से आ रहे हो।’
‘ठीक है वह देखो..... हमारा पादरी आ रहा है।’

तभी पादरी वहां पहुंचे और कहा, ‘यह फरेबी कौन है ?’

पादरी के आदेश पर ईसा को एक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया गया। रात होने पर पादरी वहां आया और ईसा के पांव छूकर कहने लगा, ‘मैंने आपको पहचान लिया था, प्रभु लेकिन आप पुनः यहां रहेंगे, तो वही पहले वाली गड़बड़ी हो जाएगी। फलस्वरूप फिर से हमें वही सब करना पड़ेगा, जो हमने अठारह सौ साल पहले किया था।’                                                  (साभार 'अमर उजाला' दिनांक : २५ दिसम्बर २०११ )


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