लेख (पंजाबी से अनुवाद)

                   आरक्षण 
                  ज्ञानी केवल सिंह निर्दोष 

अंततः राज्यसभा ने भारी बहुमत के साथ स्त्रियों के लिए 33 प्रतिशत  आरक्षण का बिल पास कर दिया है| यह एक शुभ संकेत है | हर किसी को समाज में उसका वाजिब सम्मान मिलना ही चाहिए | स्त्री-जाति के पिछड़ेपन का कारण अविद्या, पुरुष-प्रधान समाज का वर्चस्व और धार्मिक-राजनितिक नेताओं की ओर से जानबूझकर उनका तिरस्कार करना है | सिख-धर्म का आगाज़ पंद्रहवीं सदी में गुरुनानक देव ने किया था | स्त्री-जाति के हक में आवाज़  उन्होंने ही सबसे पहले उठाई | बड़े सम्मान के साथ आशा जी की वार के एक श्लोक का ज़िक्र हम अक्सर करते हैं -----
 सो क्यों मंदा आखिए जितु जमहि राजन      
 (आशा दी वार)

परमात्मा के बारे में गुरु अर्जुन देव जी ने उन्हें पहले माता कहा और फिर पिता | गुरुवाणी का संकल्प है कि हर पुरुष में स्त्री है और हर स्त्री में पुरुष, परन्तु परमेश्वर से जुड़ा व्यक्ति ही इसे समझ सकता है |


यह बात तो हमारे ज़ेहन में आती है कि पुरुष के वीर्य से नारियाँ और नारी के उदर से पुरुष पैदा होते हैं, इसलिए स्त्री बराबरी की हकदार है | सिख-धर्म के अलावा स्त्री को किसी समाज, धर्म या कौम ने जिंदगी के किसी भी क्षेत्र में, चाहे वह राजनीतिक हो, सामाजिक या धार्मिक....  उसका बनता हक नहीं दिया बल्कि स्त्री को तिरस्कार की नज़र से ही देखा जाता रहा है | जहाँ दुनिया के चिंतकों ने स्त्री को कुदरत की एक मज़ेदार भूल यह कहकर कहा कि जहाँ ईश्वर भूल गया, वहाँ उसने स्त्री बना दी, औरत आधी ज़हर आधी अमृत होती है वहैरह-वगैरह , वहीँ पीलू जैसे शायरों ने 'भट्ठ रन्ना दी दोस्ती, खुरीं जिनाह दी मत्त', तुलसी दास जैसे रामायण के रचयिता ने  'ढोर गंवार शुद्र पशु नारी, पाँचों ताड़न के अधिकारी' लिख कर स्त्री के प्रति अपना विष वमन किया है |
परन्तु सिख-धर्म में स्त्री-जाति पर कोई पाबंदी नहीं | यह धार्मिक संस्था  (एस.जी.पी.सी.) की सिरमौर भी बन सकती है | खंडे-बाटे का अमृत छककर पांच ककारा को धारण कर सकती है, कोई रोक नहीं | इतना ही काफी नहीं, वास्तविक जीवन में इस सच्चाई को ढालने की आवश्यकता है | पहले बेटियों को जन्म लेने के बाद मारते थे, अब तो कोख में ही उनका क़त्ल हो रहा है | इसे रोकने के आवश्यकता है | यों हम स्त्रियों के लिए चाहे जितने वर्ष मना लें, समारोह करते जाएँ, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला | सम्मानजनक क़ानून बनाकर जबरन नहीं थोपा जा सकता, इसे सच्चे मन से लागू करने की आवश्यकता है | स्त्रियों के आरक्षण को लेकर जो कानून बनने जा रहा है, इसका लाभ आम स्त्री-जाति तक नहीं पहुंचेगा, सिर्फ खाते-पीते घरों की महिलाएं ही इससे लाभान्वित होंगी | दलित-वर्ग के साथ भी ऐसा ही होता आ रहा है | उदहारण के तौर पर दलितों के आरक्षण को ही ले लें | नौकरियों से लेकर नेतागिरी तक वही दलित आगे बढ़ पायें हैं जो कि पहले ही आर्थिक तौर पर खुशहाल हैं | दिवंगत केन्द्रीय मंत्री जगजीवन राम से लेकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री (अब पूर्व) मायावती तक दलितों के सभी नेता पूंजीपति हैं | आज मायावती की माया के चर्चे सर्वत्र हैं | जब आम दलितों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती, वहीं मायावती के गले में हज़ार-हज़ार के नोटों के हार डाले जाते हर टीवी न्यूज़ चैनल में देखे जा सकते हैं |

सन् 1970 के आस-पास का वाक्या है | करतारपुर (जालंधर) के इलाके की एक जाट की लड़की ने अपने आप को दलित की बेटी लिखाकर अध्यापिका की नौकरी प्राप्त की थी तो समाचारपत्रों में चर्चा  का विषय बन गयी  थी | उस लड़की ने कहा कि मैं एक गरीब किसान की बेटी हूँ | मेरे पिता ने ज़मीन गहने रखकर मुझे शिक्षा दिलवाई  | मेरे नंबर भी सब से अधिक थे | मेरा कसूर सिर्फ यह है कि जाटों की बेटी हूँ | विवशतापूर्वक झूठ बोलकर मुझे नौकरी हासिल करनी पड़ी, लेकिन वह भी आपलोगों ने छीन ली | वह नौकरी एक दलित की लड़की ले गयी, जसके नंबर उससे कहीं कम थे | आज दलितों काअमीर-वर्ग ही आरक्षण का लाभ उठा रहा
 है | निचले स्तर पर दलितों की सुध कोई नहीं लेता |

यही हाल महिलाओं के आरक्षण का होना है जिसका फायदा पूंजीपति-वर्ग की महिलाएं उठाएंगी | गरीब-वर्ग की महिला चाहे वह तथाकथित ऊंची जाति का ही क्यों न हो, उन्हें किसी ने नहीं पूछना | आरक्षण होना चाहिए  पर वह पिछड़े वर्ग के लिए हो,  न कि पिछड़ी जातियों के लिए | वह चाहे महिलाएं हों या फिर पुरुष | ऊंची-नीची रेखा का आधार ऊंची-नीची जाती नहीं, बल्कि अमीरी-गरीबी होना चाहिए  | आरक्षण का मापदंड आर्थिक दृष्टि से निश्चित होना चाहिए |
( मूल पंजाबी से अनुवाद - रतन चंद 'रत्नेश' )

1 टिप्पणी:

  1. bilkul,आरक्षण होना चाहिए पर वह पिछड़े वर्ग के लिए हो, न कि पिछड़ी जातियों के लिए | वह चाहे महिलाएं हों या फिर पुरुष | ऊंची-नीची रेखा का आधार ऊंची-नीची जाती नहीं, बल्कि अमीरी-गरीबी होना चाहिए | आरक्षण का मापदंड आर्थिक दृष्टि से निश्चित होना चाहिए |

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