लघुकथा :इंडिया गेट



छात्रा से चलती बस में सामूहिक बलात्कार के मामले में न्याय की मांग में राजधानी के लोगों का व्यापक प्रदर्शन चल रहा था | सभी चैनलों पर पिछले दो दिनों से यही खबर लगातार प्रसारित हो रही थी | सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं के बाइट लिये जा रहे थे |
पर वह बहुत परेशान थी | उसने नारी-मुक्ति, नारी-अस्मिता, नारी-सुरक्षा आदि नारी-सम्बन्धी मसलों पर न सिर्फ ढेर सारी पुस्तकें लिखीं थीं
 बल्कि देश-विदेश में नारी-विषयक वक्तव्य भी देती आ रहीं थीं | परेशानी का सबब यह था कि अब तक किसी अख़बार या समाचार चैनल ने उनसे इस नृशंस बलात्कारी मसले पर राय जानने के लिए संपर्क नहीं साधा था |परेशान लेखिका ने अपनी एक चहेती पत्रकार का नम्बर मिलाया |
" कहो राधिका... कैसी हो ? कई दिनों से कोई खोज-खबर नहीं?"
" बस मैडम... समय नहीं मिल पाया |...... हाँ, यह तो बताइए, आप इंडिया गेट पहुंची या नहीं ?"
इस प्रश्न का उत्तर मिलने के पहले ही फोन कट गया |


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