रेखांकन- रत्नेश |
बुड़बुड़ाते हुए उसने जाते हुए कार को गुस्से से देखा, ‘‘गाड़ी में बैठ जाते है तो अपने को न जाने क्या समझने लगते हैं, जैसे सड़क इनके बाप की हो।’’
वह आगे बढ़ा। थोड़ी ही दूर निकला कि एक बूढ़ा सड़क पार करते हुए उसकी साइकिल से टकराते-टकराते बचा। वह चीखा----
‘‘अंधे हो क्या, देखकर नहीं चल सकते?’’
उसने बूढ़े को घूरकर देखा और आगे बढ़ गया।
उम्दा लघु कथा
जवाब देंहटाएंसटीक..अच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएंयही हकीकत है।
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सही है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
जानकार अच्छा लगा कि आपलोगों को मेरी लघुकथा पसंद आई.
जवाब देंहटाएंbahut badiya likha
जवाब देंहटाएंnippy australia