पेड़ पर से
जहाँ-जहाँ से गिरे थे पत्ते
पतझड़ में
वहाँ-वहाँ फूटती कोपलों से
झाँक रहें हैं नन्हें -नन्हें
कोमल चिकने पात ...
पत्ते जो झडकर गिरे थे
पसरे थे धरती पर दूर-दूर तक
कुछ जले, कुछ मिट्टी में दफ़न हुए
न वे हिंदू थे, न मुसलमान
फिर भी इसी मिट्टी में समाये
अपना-अपना भाग्य उनका....
पर कभी कुछ खत्म हुआ है क्या?
मरा है कभी क्या कोई
देह मरती है आत्मा नहीं
आत्मा कोंपल की तरह
लेती रहती है पुनर्जन्म..........
टूटी शाखें नयी कोपलों से भरती रही है हमेशा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव ...!!
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंsundar bhaav samete hue rachna...sundar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ...........
जवाब देंहटाएंदेह मरती है आत्मा नहीं
जवाब देंहटाएंआत्मा कोंपल की तरह
लेती रहती है पुनर्जन्म....Nice