जगमग-जगमग दीप जले
घर-आँगन बिखरे प्रकाश
फूलझड़ी और पटाखों से
चमक उठे धरती-आकाश
दीवाली का पावन त्यौहार
करता है तम का विनाश
निराशा को दूर भगा
मन में जगाता है एक आस
आशाओं के दीप जले
रहे न कभी कोई उदास
मन का अँधियारा दूर हटे
रहे उजियारे का सदा अहसास
घृणा-द्वेष और छल-कपट
कभी न फटके आस-पास
दीवाली के दीपों से
सर्वत्र प्रेम का हो उजास
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